पशुपालन में लापरवाही से रोग फैलने का खतरा, ग्रामीणों को किया गया जागरूक

 

सीतापुर जिले के महराजपुर और खैराबाद ब्लॉक में इन दिनों पशुओं में फैल रही बीमारियों को लेकर प्रशासन ने सतर्कता बढ़ा दी है। हाल ही में कुछ गाँवों में खुरपका-मुंहपका (FMD) और ब्रुसेलोसिस जैसे रोगों के लक्षण पाए गए हैं, जो पशुओं से मनुष्यों में भी फैल सकते हैं। इसी को लेकर पशु चिकित्सा विभाग ने गाँवों में जागरूकता शिविर लगाए और ग्रामीणों को सतर्कता व सुरक्षा उपायों की जानकारी दी।

कैसे फैलता है खतरा?

पशुपालन विभाग के चिकित्सक डॉ. दिनेश वर्मा ने बताया कि "यदि बीमार पशुओं की नियमित देखभाल न हो, टीकाकरण न कराया जाए, और दूध-दूधारू उपकरणों को स्वच्छ न रखा जाए, तो इन रोगों का संक्रमण मनुष्यों तक पहुँच सकता है।"

ब्रुसेलोसिस, एक बैक्टीरियल रोग है जो दूषित दूध या जानवरों के सीधे संपर्क से लोगों में बुखार, कमजोरी और जोड़ों में दर्द जैसी समस्याएँ पैदा करता है। वहीं FMD से पशुओं की उत्पादकता कम हो जाती है, जिससे ग्रामीणों की आय पर भी प्रभाव पड़ता है।

गाँव-गाँव जाकर दी गई जानकारी

खैराबाद के सदरपुर, महुआ, सिहोली और आसपास के गाँवों में पशु चिकित्सकों की टीम ने जाकर ग्रामीणों को बताया:

  • पशुओं का नियमित टीकाकरण कराना क्यों जरूरी है

  • बीमार पशु को अन्य पशुओं से अलग रखना

  • दूध निकालने से पहले और बाद में हाथों और बर्तनों की सफाई

  • पशु शेड की नियमित धुलाई और ब्लीचिंग पाउडर छिड़काव

  • रोग के लक्षण दिखते ही निकटतम पशु चिकित्सालय से संपर्क

महिलाओं को विशेष रूप से किया गया जागरूक

ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएँ पशुपालन में प्रमुख भूमिका निभाती हैं, इसलिए जागरूकता सत्रों में उन्हें विशेष रूप से शामिल किया गया। सरोज देवी (45) बताती हैं, “पहले हम बिना दस्ताने दूध निकालते थे, लेकिन अब समझ आ गया है कि इससे हम खुद भी बीमार पड़ सकते हैं।”

महिला स्वयं सहायता समूहों को भी बताया गया कि वे पशु आहार, स्वच्छता, और गाय/भैंस की देखभाल को लेकर एक सामुदायिक योजना बना सकती हैं।

सरकार की ओर से योजनाएँ

जिला पशुपालन अधिकारी ने जानकारी दी कि सरकार राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NADCP) के अंतर्गत फ्री टीकाकरण, टैगिंग और जांच शिविर आयोजित कर रही है। साथ ही ब्रुसेलोसिस नियंत्रण अभियान के लिए भी विशेष बजट स्वीकृत किया गया है।

पशु बीमा योजना, पशुधन संजीवनी मोबाइल एप, और कृत्रिम गर्भाधान जैसी सुविधाओं के बारे में भी जानकारी दी गई।

पशुपालन केवल ग्रामीण आय का साधन नहीं, बल्कि एक संवेदनशील स्वास्थ्य जिम्मेदारी भी है। ज़रा-सी लापरवाही मनुष्य और पशु दोनों के लिए ख़तरनाक हो सकती है। पशु चिकित्सा विभाग की यह पहल सराहनीय है, जिससे न केवल रोगों से बचाव संभव है, बल्कि पशुधन की गुणवत्ता और ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी सुरक्षित रह सकती है।

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